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Sunday 1 November 2015

ये रात बीत जायेगी............

टूटे हुए सपनों की चुभन मेरे दिल को तड़पायेगी;
ना जाने कैसे ये रात बीत पायेगी.....

चाँद की चमक मुझे मेरे मन में बसे अँधेरे का एहसास करायेगी;
 कौन जाने कैसे ये रात बीत पायेगी......

उस नन्हीं सी कली को देखकर ऐसा लगा जैसे सवेरे तक खिल जाएगी;
शायद इसी इंतज़ार में ये रात बीत जायेगी......

सोचा ना था एक ठंडी हवा की पुरवाई इन पलकों को भारी कर जायेगी;
अब शायद ये रात गुज़र ही जायेगी.........

काली रात में जब सूरज की पहली किरण आएगी,मेरी उम्मीदों का दिया फिर से जलाएगी;
में जानती हूँ ये रात बीत जायेगी............

अँधेरे से गुज़रते हुए एक नई सुबह आएगी;
हाँ,मुझे यकीन है ये रात बीत जाएगी.............

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