ज़िन्दगी की इतनी अनसुलझी पहेलियाँ जिसका कोई जवाब नहीं,
ना जाने कितनी ही ऐसी हसरतें जिनका कोई मक़ाम नहीं,
दिल से निकलती कितनी दुआएं जिनकी कोई कबूलियत नहीं,
मन का अँधेरा दूर कर दे ऐसी कोई रोशनी नहीं,
आँखें दुनिया तो देखती हैं पर अब शायद सपने नहीं,
दिल तो अब भी धड़कता है बस अब उसमे कोई जज़्बात नहीं,
खुदा पर यकीन तो आज भी है बस अब उससे पहले जैसी मुहब्बत नहीं,
सुबह तो कल भी होगी पर अब मुझे उसका इंतज़ार नहीं ......
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