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Tuesday 24 March 2015

ढूंढ़ती हूँ में

ढूंढा तो बहुत पर कहीं नहीं मिले मुझे वो,
पर अब लगता है की हर जगह हर तरफ हैं वो,
इंसान की बेबसी में दिखते हैँ मुझे वो,
आँखों से निकलते आँसुओं मे भी है वो ,
क़यामत के दिन के मालिक भी वो और इंसान का नया जन्म भी वो,
दबी हुई उस हंसी में दिखती है मुझे उनकी झलक,
उन्हें याद करके अब रात भर नहीं झपकती मेरी पलक  ,
कभी ठंडी हवाओं मे तो कभी बारिश की बूंदो मे,
कभी सीप मे छुपे उस मोती में तो कभी चाँद और सूरज में,
अपने होंसलों की उड़ान में देखा है मैंने उन्हें,
और अपने टूटे हुए परों मे भी पाया है,
वहीं हैं धूप वहीं हैं छाओं,
वहीं है मेरी आस और अब वहीँ हैं मेरे पास,
मेरा आने वाला कल,मेरा बीता हुआ पल और मेरा आज भी वही,
मेरी हसरतें, मेरा जुनून और मेरी दुआएँ भी वही,
करती हूँ रात दिन जिसका इंतज़ार भी वही,
कहाँ-कहाँ नहीं ढूंढा मैंने उन्हें उम्र भर,
भटकती रही जिसकी तलाश में मैं दरबदर,
मिली ना जिसकी मुझे कभी कोई खबर,
उनकी एक झलक देखने के लिए तरसती रही मेरी नज़र,
अब जाना तो समझ आया की मेरे हर लफ्ज़, हर ख़्याल और हर कोशिश में मेरे साथ ही तो थे वो ज़िन्दगी भर।

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