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Wednesday 14 January 2015

सिफर की क़ीमत

एक वक़्त था जब मुझे लगता था की ज़िन्दगी के इस स्कूल में, इस इम्तिहान मे मैं कभी position नहीं ले सकती....इसमें मेरे Result Card पर कभी Distinction नहीं हो सकती ....शायद Grace Marks से Pass हो जाऊं पर ज़्यादा इमकान है की Fail हो जाउंगी ....कभी कभार अपना आप मुझे सिफर लगता था , Zero ..जिसकी कोई Value नही है...Useless...एक सिफर जैसी ज़िन्दगी गुज़ार रही थी ....सिर्फ एक सिफर....फिर भी लोग कहते हैं उम्मीद रखो, चीज़े बदलेंगी......सुबह से लेकर रात तक उम्मीद को ढूँढ़ती रहती थी पर उम्मीद तो कहीं नज़र नही आती थी … मैं मानती हूँ मेरा भगवान मेरे अंदर रहता है और हर वक़्त मुझसे बातें करता हैँ ..… उन्होंने मुझे समझाया की उम्मीद को ढूंढा नहीं जाता ......उम्मीद को रखा जाता है .......अपने अंदर, अपने दिल में , अपने ज़हन में .....ये नन्हे बीज की तरह होती है.....चंद दिनों में बीज ज़मीन की मिटटी से बाहर तो आ जाता है,मगर उससे दरख़्त बनने में बहुत देर लगती है, लेकिन वो दरख़्त बनता ज़रूर है.… अगर उसको पानी दिया जाता रहे, अगर मिटटी को नर्म रखा जाए …… सिफर की ज़रूरत हर अदद को होती है .. … कुछ बनने के लिए सिफर जिस अदद के साथ लगे तो उसकी क़द्रो क़ीमत कई गुना बढ़ा देता है .. … तो अगर में अपने आप को सिफर समझती हूँ तब भी में  क़ीमती हूँ.…तब भी में बेकार नहीं .. .. तब भी में हर गिनती से पहले आउंगी . .. हर गिनती का आग़ाज़ मुझी से होगा … और हर नौ अदद के बाद एक दफा मेरी ज़रूरत पड़ेगी .... अगले मोड़ पर जाने के लिए  तबदीली जब भी आएगी मुझी से आयेगी.....सिफर से आएगी।


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